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सदा अम्बालवी शायरी | शाही शायरी

सदा अम्बालवी शेर

22 शेर

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
सब ने सीखे हैं अब आदाब ज़माने वाले

सदा अम्बालवी




अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बाँ थी प्यारे
अब सियासत ने उसे जोड़ दिया मज़हब से

सदा अम्बालवी




बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी
बढ़े है उम्र ज्यूँ-ज्यूँ ज़िंदगी कम होती जाती है

सदा अम्बालवी




चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
नहीं बदलता ज़माना तो हम बदलते हैं

सदा अम्बालवी




दे गया ख़ूब सज़ा मुझ को कोई कर के मुआफ़
सर झुका ऐसे कि ता-उम्र उठाया न गया

सदा अम्बालवी




दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर
वक़्त से पहले तो आते नहीं आने वाले

सदा अम्बालवी




दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
इक न इक रोज़ तो वादे से मुकरना है उसे

सदा अम्बालवी




हमें न रास ज़माने की महफ़िलें आई
चलो कि छोड़ के अब इस जहाँ को चलते हैं

सदा अम्बालवी




इक न इक रोज़ रिफ़ाक़त में बदल जाएगी
दुश्मनी को भी सलीक़े से निभाते जाओ

सदा अम्बालवी