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रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ | शाही शायरी
rasm-e-duniya to kisi taur nibhate jao

ग़ज़ल

रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ

सदा अम्बालवी

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रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
दिल नहीं मिलते भी तो हाथ मिलाते जाओ

कभी चट्टान के सीने से कभी बाज़ू से
बहते पानी की तरह राह बनाते जाओ

तेग़ उठती नहीं है तुम से जो ज़ालिम के ख़िलाफ़
हक़ में मज़लूम के आवाज़ उठाते जाओ

लोग समझेंगे कि है शख़्स बड़ा शाइस्ता
तुम हर इक बात पे बस नाक चढ़ाते जाओ

तुम सितारों के भरोसे पे न बैठे रहना
अपनी तदबीर से तक़दीर बनाते जाओ

इक न इक रोज़ रिफ़ाक़त में बदल जाएगी
दुश्मनी को भी सलीक़े से निभाते जाओ

और कुछ भी नहीं जब ऐ 'सदा' तुम से होता
शेर लिख लिख के ज़माने को सुनाते जाओ