आज जुनूँ के ढंग नए हैं
तेरी गली भी छूट न जाए
क़ाबिल अजमेरी
आज 'क़ाबिल' मय-कदे में इंक़लाब आने को है
अहल-ए-दिल अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ तक आ गए
क़ाबिल अजमेरी
अब ये आलम है कि ग़म की भी ख़बर होती नहीं
अश्क बह जाते हैं लेकिन आँख तर होती नहीं
क़ाबिल अजमेरी
अभी तो तन्क़ीद हो रही है मिरे मज़ाक़-ए-जुनूँ पे लेकिन
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों की बरहमी का सवाल आया तो क्या करोगे
क़ाबिल अजमेरी
बहुत काम लेने हैं दर्द-ए-जिगर से
कहीं ज़िंदगी को क़रार आ न जाए
क़ाबिल अजमेरी
दिन छुपा और ग़म के साए ढले
आरज़ू के नए चराग़ जले
क़ाबिल अजमेरी
ग़म-ए-जहाँ के तक़ाज़े शदीद हैं वर्ना
जुनून-ए-कूचा-ए-दिलदार हम भी रखते हैं
क़ाबिल अजमेरी
हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए
हम नज़र तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए
क़ाबिल अजमेरी
हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का
आए दुनिया हमारे साथ चले
क़ाबिल अजमेरी