दिन छुपा और ग़म के साए ढले
आरज़ू के नए चराग़ जले
हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का
आए दुनिया हमारे साथ चले
लब पे हिचकी भी है तबस्सुम भी
जाने हम किस से मिल रहे हैं गले
दिल के इन हौसलों का हाल न पूछ
जो तिरे दामन-ए-करम में पले
कौन याद आ गया अज़ाँ के वक़्त
बुझता जाता है दिल चराग़ जले
मस्लहत सर-निगूँ ख़िरद ख़ामोश
इश्क़ के आगे किस की दाल गले
ग़ज़ल
दिन छुपा और ग़म के साए ढले
क़ाबिल अजमेरी