अभी तो तन्क़ीद हो रही है मिरे मज़ाक़-ए-जुनूँ पे लेकिन
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों की बरहमी का सवाल आया तो क्या करोगे
क़ाबिल अजमेरी
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अब ये आलम है कि ग़म की भी ख़बर होती नहीं
अश्क बह जाते हैं लेकिन आँख तर होती नहीं
क़ाबिल अजमेरी
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आज 'क़ाबिल' मय-कदे में इंक़लाब आने को है
अहल-ए-दिल अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ तक आ गए
क़ाबिल अजमेरी
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