EN اردو
पी पी श्रीवास्तव रिंद शायरी | शाही शायरी

पी पी श्रीवास्तव रिंद शेर

8 शेर

आस्तीनों में छुपा कर साँप भी लाए थे लोग
शहर की इस भीड़ में कुछ लोग बाज़ीगर भी थे

पी पी श्रीवास्तव रिंद




आसूदगी ने थपकियाँ दे कर सुला दिया
घर की ज़रूरतों ने जगाया तो डर लगा

पी पी श्रीवास्तव रिंद




बर्फ़-मंज़र धूल के बादल हवा के क़हक़हे
जो कभी दहलीज़ के बाहर थे वो अंदर भी थे

पी पी श्रीवास्तव रिंद




चाहता है दिल किसी से राज़ की बातें करे
फूल आधी रात का आँगन में है महका हुआ

पी पी श्रीवास्तव रिंद




ख़्वाहिशों की आँच में तपते बदन की लज़्ज़तें हैं
और वहशी रात है गुमराहियाँ सर पर उठाए

पी पी श्रीवास्तव रिंद




कोई दस्तक न कोई आहट थी
मुद्दतों वहम के शिकार थे हम

पी पी श्रीवास्तव रिंद




रात हम ने जुगनुओं की सब दुकानें बेच दीं
सुब्ह को नीलाम करने के लिए कुछ घर भी थे

पी पी श्रीवास्तव रिंद




सुर्ख़ मौसम की कहानी तो पुरानी हो गई
खुल गया मौसम तो सारे शहर में चर्चा हुआ

पी पी श्रीवास्तव रिंद