बीते जिस की छाँव में मौसम के दिन रात
अपने मन की आस का टूट गया वो पात
नज़ीर फ़तेहपूरी
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धरती को धड़कन मिली मिला समय को ज्ञान
मेरे जब जब लब खुले उठा कोई तूफ़ान
नज़ीर फ़तेहपूरी
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काग़ज़ को मैं ने दिया शब्दों का वर्दान
गीत ग़ज़ल के रूप में मुझे मिला सम्मान
नज़ीर फ़तेहपूरी
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कौन अब उस को उजड़ने से बचा सकता है
हाए वो घर कि जो अपने ही मकीं का न रहा
नज़ीर फ़तेहपूरी
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