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नाज़िम बरेलवी शायरी | शाही शायरी

नाज़िम बरेलवी शेर

3 शेर

अपने अंदाज़-ए-तकल्लुम को बदल दे वर्ना
मेरा लहजा भी तिरे साथ बदल सकता है

नाज़िम बरेलवी




गए मौसम का इक पीला सा पत्ता शाख़ पर रह कर
न जाने क्या बताना चाहता है इन बहारों को

नाज़िम बरेलवी




शाएरी तो वारदात-ए-क़ल्ब की रूदाद है
क़ाफ़िया-पैमाई को मैं शाएरी कैसे कहूँ

नाज़िम बरेलवी