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क्या है मेरे दिल की हालत वाक़ई कैसे कहूँ | शाही शायरी
kya hai mere dil ki haalat waqai kaise kahun

ग़ज़ल

क्या है मेरे दिल की हालत वाक़ई कैसे कहूँ

नाज़िम बरेलवी

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क्या है मेरे दिल की हालत वाक़ई कैसे कहूँ
क्यूँ है मेरी आँख में इतनी नमी कैसे कहूँ

मेरी इक इक साँस पे हक़ है मिरे अल्लाह का
मैं भला इस ज़िंदगी को आप की कैसे कहूँ

कौन है मेरा मुख़ालिफ़ किस ने की है मुख़बिरी
जानता हूँ मैं बताऊँगा अभी कैसे कहूँ

शाएरी तो वारदात-ए-क़ल्ब की रूदाद है
क़ाफ़िया-पैमाई को मैं शाएरी कैसे कहूँ

ये जो मेरे घर के जलने से हुई है चार-सू
लोग कहते हैं कहें मैं रौशनी कैसे कहूँ

सामने आया तो 'नाज़िम' उस ने पहचाना नहीं
फ़ेसबुक की दोस्ती को दोस्ती कैसे कहूँ