अपनी महफ़िल में मुझे देख के कहता है वो बुत
क्यूँ मिरे घर में मुसलमान चले आते हैं
नसीम भरतपूरी
चराग़-ए-शाम-ए-ग़रीबी था में ज़माने में
किसी ने आ के न ठंडा किया जला के मुझे
नसीम भरतपूरी
दे दें अभी करे जो कोई ख़ूब-रू पसंद
हम को नहीं पसंद दिल-ए-आरज़ू-पसंद
नसीम भरतपूरी
दिल की शामत आई जा कर फँस गया
यार के गेसू-ए-पुर-ख़म क्या करें
नसीम भरतपूरी
मुँह मेरी तरफ़ है तो नज़र ग़ैर की जानिब
करते हैं किधर बात किधर देख रहे हैं
नसीम भरतपूरी
तसल्लियाँ भी नहीं उन की छेड़ से ख़ाली
रुला के छोड़ते हैं वो हँसा हँसा के मुझे
नसीम भरतपूरी
तुम्हारी तेग़ से आँखें लगी हैं मरने वालों की
ये लैला कब मिरी जाँ पर्दा-ए-महमिल से निकलेगी
नसीम भरतपूरी
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है
तुम्हारी ज़ुल्फ़ दिल ख़ुद माँग लेगी
नसीम भरतपूरी