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हम यार की ग़ैरों पे नज़र देख रहे हैं | शाही शायरी
hum yar ki ghairon pe nazar dekh rahe hain

ग़ज़ल

हम यार की ग़ैरों पे नज़र देख रहे हैं

नसीम भरतपूरी

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हम यार की ग़ैरों पे नज़र देख रहे हैं
गो मुँह पे न लाएँगे मगर देख रहे हैं

मुँह मेरी तरफ़ है तो नज़र ग़ैर की जानिब
करते हैं किधर बात किधर देख रहे हैं

कै रोज़ रक़ीबों से निभी रस्म-ए-मोहब्बत
हम भी यही ऐ रश्क-ए-क़मर देख रहे हैं

क़ासिद से जो बीमार बहुत मुझ को सुना था
अख़बार में मरने की ख़बर देख रहे हैं

पुरसाँ नहीं कोई भी 'नसीम' अहल-ए-हुनर का
दुनिया की हवा शाम ओ सहर देख रहे हैं