हवा के साथ सफ़र का न हौसला था जिसे
सभी को ख़ौफ़ उसी लम्हा-ए-शरर से था
मर्ग़ूब हसन
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यही बहुत है कि मिट्टी जड़ों से लिपटी है
वगर्ना आज दरख़्तों में बर्ग-ओ-बार नहीं
मर्ग़ूब हसन
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