आज हो जाने दो हर एक को बद-मस्त-ओ-ख़राब
आज एक एक को पिलवाओ कि कुछ रात कटे
मख़दूम मुहिउद्दीन
आप की याद आती रही रात भर
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर
मख़दूम मुहिउद्दीन
बज़्म से दूर वो गाता रहा तन्हा तन्हा
सो गया साज़ पे सर रख के सहर से पहले
मख़दूम मुहिउद्दीन
चश्म ओ रुख़्सार के अज़़कार को जारी रक्खो
प्यार के नामे को दोहराओ कि कुछ रात कटे
मख़दूम मुहिउद्दीन
दीप जलते हैं दिलों में कि चिता जलती है
अब की दीवाली में देखेंगे कि क्या होता है
मख़दूम मुहिउद्दीन
एक झोंका तिरे पहलू का महकती हुई याद
एक लम्हा तिरी दिलदारी का क्या क्या न बना
मख़दूम मुहिउद्दीन
एक था शख़्स ज़माना था कि दीवाना बना
एक अफ़्साना था अफ़्साने से अफ़्साना बना
मख़दूम मुहिउद्दीन
हम ने हँस हँस के तिरी बज़्म में ऐ पैकर-ए-नाज़
कितनी आहों को छुपाया है तुझे क्या मालूम
मख़दूम मुहिउद्दीन
हयात ले के चलो काएनात ले के चलो
चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो
मख़दूम मुहिउद्दीन