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महेंद्र प्रताप चाँद शायरी | शाही शायरी

महेंद्र प्रताप चाँद शेर

4 शेर

आपसी रिश्तों की ख़ुशबू को कोई नाम न दो
इस तक़द्दुस को न काग़ज़ पर उतारा जाए

महेंद्र प्रताप चाँद




मात-पिता को दे बन-वास
ख़ुद को आज्ञाकारी लिख

महेंद्र प्रताप चाँद




पराए दर्द में होता नहीं शरीक कोई
ग़मों के बोझ को ख़ुद आप ढोना पड़ता है

महेंद्र प्रताप चाँद




उसी ने आग लगाई है सारी बस्ती में
वही ये पूछ रहा है कि माजरा क्या है

महेंद्र प्रताप चाँद