EN اردو
मजबूरी लाचारी लिख | शाही शायरी
majburi lachaari likh

ग़ज़ल

मजबूरी लाचारी लिख

महेंद्र प्रताप चाँद

;

मजबूरी लाचारी लिख
हाँ रूदाद हमारी लिख

ग़ैरों को इल्ज़ाम न दे
अपनों की अय्यारी लिख

सोच जो हल्की है तो क्या
ग़ज़लें भारी भारी लिख

ऐब न गिनवा औरों के
अपनी ''कार-गुज़ारी'' लिख

पहले झूटे वादे कर
फिर अपनी लाचारी लिख

चाहे हक़ीक़त कुछ भी हो
अपना पलड़ा भारी लिख

उजड़े घर के आँगन में
हरी-भरी फुलवारी लिख

हर मंसब हर ओहदे पर
अपनी दा'वे-दारी लिख

मात-पिता को दे बन-वास
ख़ुद को आज्ञाकारी लिख

'चाँद' की ख़सलत में यारब
कुछ तो दुनिया-दारी लिख