EN اردو
महेंद्र कुमार सानी शायरी | शाही शायरी

महेंद्र कुमार सानी शेर

12 शेर

दीवार ओ दर ने रंगों से दामन छुड़ा लिया
यक-रंगी-ए-सुकूत से क्यूँ घर निढ़ाल है

महेंद्र कुमार सानी




हो रहा हूँ तिरे दुख में तहलील
अपने हर दर्द से कटता जाऊँ

महेंद्र कुमार सानी




जाने कैसी रौशनी थी कर गई अंधा मुझे
इस भयानक तीरगी में भी बुझा रहता हूँ मैं

महेंद्र कुमार सानी




मैं अपनी यात्रा पर जा रहा हूँ
मुझे अब लौट कर आना नहीं है

महेंद्र कुमार सानी




मैं चाहता हूँ कि तेरी तरफ़ न देखूँ मैं
मिरी नज़र को मगर तू ने बाँध रक्खा है

महेंद्र कुमार सानी




मैं दिन को शब से भला क्यूँ अलग करूँ सानी
ये तीरगी भी तो इक रौशनी का हिस्सा है

महेंद्र कुमार सानी




मैं तन्हाई को अपना हम-सफ़र क्या मान बैठा
मुझे लगता है मेरे साथ दुनिया चल रही है

महेंद्र कुमार सानी




रौशनी में लफ़्ज़ के तहलील हो जाने से क़ब्ल
इक ख़ला पड़ता है जिस में घूमता रहता हूँ मैं

महेंद्र कुमार सानी




तिरा वजूद तिरे रास्ते में हाइल है
यहीं से हो के मिरा क़ाफ़िला गुज़रता है

महेंद्र कुमार सानी