आँख उठाओ तो हिजाबात का इक आलम है
दिल से देखो तो कोई राह में हाइल भी नहीं
जावेद वशिष्ट
आज अपने भी पराए से नज़र आते हैं
प्यार की रस्म ज़माने से उठी जाती है
जावेद वशिष्ट
दर्द की आँच बना देती है दिल को इक्सीर
दर्द से दिल है अगर दर्द नहीं दिल भी नहीं
जावेद वशिष्ट
ग़म से एहसास का आईना जिला पाता है
और ग़म सीखे है आ कर ये सलीक़ा मुझ से
जावेद वशिष्ट
काँटों पे चले हैं तो कहीं फूल खिले हैं
फूलों से मिले हैं तो बड़ी चोट लगी है
जावेद वशिष्ट
कोई ख़याल कोई याद कोई तो एहसास
मिला दे आज ज़रा आ के हम को ख़ुद हम से
जावेद वशिष्ट
मुद्दत से रही फ़र्श तिरी राहगुज़र में
तब जा के सितारों से कहीं आँख लड़ी है
जावेद वशिष्ट
ये तो वक़्त वक़्त की बात है हमें उन से कोई गिला नहीं
वो हों आज हम से ख़फ़ा ख़फ़ा कभू हम से उन को भी प्यार था
जावेद वशिष्ट