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जगत मोहन लाल रवाँ शायरी | शाही शायरी

जगत मोहन लाल रवाँ शेर

12 शेर

आएँ पसंद क्या उसे दुनिया की राहतें
जो लज़्ज़त-आश्ना-ए-सितम-हा-ए-नाज़ था

जगत मोहन लाल रवाँ




अभी तक फ़स्ल-ए-गुल में इक सदा-ए-दर्द आती है
वहाँ की ख़ाक से पहले जहाँ था आशियाँ मेरा

जगत मोहन लाल रवाँ




अगर कुछ रोज़ ज़िंदा रह के मर जाना मुक़द्दर है
तो इस दुनिया में आख़िर बाइस-ए-तख़्लीक़-ए-जाँ क्या था

जगत मोहन लाल रवाँ




हँसे भी रोए भी लेकिन न समझे
ख़ुशी क्या चीज़ है दुनिया में ग़म क्या

जगत मोहन लाल रवाँ




कुछ इज़्तिराब-ए-इश्क़ का आलम न पूछिए
बिजली तड़प रही थी कि जान इस बदन में थी

जगत मोहन लाल रवाँ




पेश तो होगा अदालत में मुक़दमा बे-शक
जुर्म क़ातिल ही के सर हो ये ज़रूरी तो नहीं

जगत मोहन लाल रवाँ




सामने तारीफ़ ग़ीबत में गिला
आप के दिल की सफ़ाई देख ली

जगत मोहन लाल रवाँ




तोड़ा है दम अभी अभी बीमार-ए-हिज्र ने
आए मगर हुज़ूर को ताख़ीर हो गई

जगत मोहन लाल रवाँ




उस को ख़िज़ाँ के आने का क्या रंज क्या क़लक़
रोते कटा हो जिस को ज़माना बहार का

जगत मोहन लाल रवाँ