'रवाँ' किस को ख़बर उनवान-ए-आग़ाज़-ए-जहाँ क्या था
ज़मीं का क्या था नक़्शा और रंग-ए-आसमाँ क्या था
यही हस्ती इसी हस्ती के कुछ टूटे हुए रिश्ते
वगरना ऐसा पर्दा मेरे उन के दरमियाँ क्या था
तिरा बख़्शा हुआ दिल और दिल की ये हवस-कारी
मिरा इस में क़ुसूर ऐ दस्त-गीर-ए-आसियाँ क्या था
अगर कुछ रोज़ ज़िंदा रह के मर जाना मुक़द्दर है
तो इस दुनिया में आख़िर बाइस-ए-तख़्लीक़-ए-जाँ क्या था
हम इतने फ़ासले पर आ गए हैं अहद-ए-माज़ी से
ख़बर ये भी नहीं अज्दाद का नाम-ओ-निशाँ क्या था
किसी बर्क़-ए-तजल्ली पर ज़रा सा ग़ौर कर लेना
अगर ये जानना हो आलम-ए-रूह-ए-रवाँ क्या था
ग़ज़ल
'रवाँ' किस को ख़बर उनवान-ए-आग़ाज़-ए-जहाँ क्या था
जगत मोहन लाल रवाँ