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'रवाँ' किस को ख़बर उनवान-ए-आग़ाज़-ए-जहाँ क्या था | शाही शायरी
rawan kis ko KHabar unwan-e-aghaz-e-jahaan kya tha

ग़ज़ल

'रवाँ' किस को ख़बर उनवान-ए-आग़ाज़-ए-जहाँ क्या था

जगत मोहन लाल रवाँ

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'रवाँ' किस को ख़बर उनवान-ए-आग़ाज़-ए-जहाँ क्या था
ज़मीं का क्या था नक़्शा और रंग-ए-आसमाँ क्या था

यही हस्ती इसी हस्ती के कुछ टूटे हुए रिश्ते
वगरना ऐसा पर्दा मेरे उन के दरमियाँ क्या था

तिरा बख़्शा हुआ दिल और दिल की ये हवस-कारी
मिरा इस में क़ुसूर ऐ दस्त-गीर-ए-आसियाँ क्या था

अगर कुछ रोज़ ज़िंदा रह के मर जाना मुक़द्दर है
तो इस दुनिया में आख़िर बाइस-ए-तख़्लीक़-ए-जाँ क्या था

हम इतने फ़ासले पर आ गए हैं अहद-ए-माज़ी से
ख़बर ये भी नहीं अज्दाद का नाम-ओ-निशाँ क्या था

किसी बर्क़-ए-तजल्ली पर ज़रा सा ग़ौर कर लेना
अगर ये जानना हो आलम-ए-रूह-ए-रवाँ क्या था