EN اردو
अंजाम ये हुआ है दिल-ए-बे-क़रार का | शाही शायरी
anjam ye hua hai dil-e-be-qarar ka

ग़ज़ल

अंजाम ये हुआ है दिल-ए-बे-क़रार का

जगत मोहन लाल रवाँ

;

अंजाम ये हुआ है दिल-ए-बे-क़रार का
थमता नहीं है पाँव हमारे ग़ुबार का

पहले किया ख़याल न गुल का न ख़ार का
अब दुख रहा है पाँव नसीम-ए-बहार का

पैहम दिए वो रंज कि इंसाँ बना दिया
मिन्नत-पज़ीर हूँ सितम-ए-रोज़गार का

उस को ख़िज़ाँ के आने का क्या रंज क्या क़लक़
रोते कटा हो जिस को ज़माना बहार का

मख़्फ़ी है इस में राज़-ए-बक़ा-ए-हयात-ए-इश्क़
क्या पूछते हो हाल दिल-ए-बे-क़रार का

मजबूरियाँ सितम हैं वगरना ख़ुदा की शान
मैं और यूँ गुज़ार दूँ मौसम बहार का

ग़ाफ़िल निगाह-ए-होश से रंग-ए-चमन को देख
परवर्दा-ए-ख़ज़ाँ है ज़माना बहार का

निकला है दम 'रवाँ' का तमन्ना के साथ साथ
अल्लाह-रे ज़ोर नाला-ए-बे-इख़्तियार का