हैं घर की मुहाफ़िज़ मिरी दहकी हुई आँखें
मैं ताक़ में रख आया हूँ जलती हुई आँखें
इम्तियाज़ साग़र
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होगा बहुत शदीद तमाज़त का इंतिक़ाम
साए से मिल के रोएगी दीवार देखना
इम्तियाज़ साग़र
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उसी दरख़्त को मौसम ने बे-लिबास किया
मैं जिस के साए में थक कर उदास बैठा था
इम्तियाज़ साग़र
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