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इम्दाद हमदानी शायरी | शाही शायरी

इम्दाद हमदानी शेर

2 शेर

ख़िज़ाँ का ज़हर सारे शहर की रग रग में उतरा है
गली-कूचों में अब तो ज़र्द चेहरे देखने होंगे

इम्दाद हमदानी




मुसालहत का पढ़ा है जब से निसाब मैं ने
सलीक़ा दुनिया में ज़िंदा रहने का आ गया है

इम्दाद हमदानी