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किसी के वास्ते क्या क्या हमें दुख झेलने होंगे | शाही शायरी
kisi ke waste kya kya hamein dukh jhelne honge

ग़ज़ल

किसी के वास्ते क्या क्या हमें दुख झेलने होंगे

इम्दाद हमदानी

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किसी के वास्ते क्या क्या हमें दुख झेलने होंगे
शबों को जागना होगा कड़े दिन काटने होंगे

तिरी संगीं फ़सीलों को तो जुम्बिश तक नहीं आई
हवाएँ ले उड़ीं जिन को वो अपने झोंपड़े होंगे

भँवर तक तो कोई आया नहीं मेरे लिए लेकिन
मैं बच निकला तो साहिल पर कई बाज़ू खुले होंगे

ख़िज़ाँ का ज़हर सारे शहर की रग रग में उतरा है
गली-कूचों में अब तो ज़र्द चेहरे देखने होंगे

हमें दुनिया की गर्दिश ये तमाशा भी दिखाएगी
घरों में तीरगी होगी मुंडेरों पर दिए होंगे

कोई दौलत नहीं 'इमदाद' अपने दस्त ओ दामन में
फ़क़त यादों के सिक्के दिल तिजोरी में रखे होंगे