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जो नर्म लहजे में बात करना सिखा गया है | शाही शायरी
jo narm lahje mein baat karna sikha gaya hai

ग़ज़ल

जो नर्म लहजे में बात करना सिखा गया है

इम्दाद हमदानी

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जो नर्म लहजे में बात करना सिखा गया है
वो शख़्स 'इमदाद' मुझ को कुंदन बना गया है

मोहब्बतों के नगर से आया था जो पयामी
गिरा के दीवार नफ़रतों की चला गया है

मैं वो मुसाफ़िर हूँ जिस का कोई नहीं ठिकाना
ये ना-रसाई का ज़ख़्म मुझ को रुला गया है

मुसालहत का पढ़ा है जब से निसाब मैं ने
सलीक़ा दुनिया में ज़िंदा रहने का आ गया है

यहाँ के कर्बल में कोई तिश्ना-दहन नहीं है
वो फ़ौज नहर-ए-फ़ुरात पर क्यूँ बिठा गया है

मैं उस मुसाफ़िर को याद कर के मुतमइन हूँ
जो ढेर सारी दुआएँ दे के चला गया है