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इब्राहीम अश्क शायरी | शाही शायरी

इब्राहीम अश्क शेर

21 शेर

बस एक बार ही तोड़ा जहाँ ने अहद-ए-वफ़ा
किसी से हम ने फिर अहद-ए-वफ़ा किया ही नहीं

इब्राहीम अश्क




बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में
इंसाँ की ज़िंदगी का अजब बंदोबस्त था

इब्राहीम अश्क




चले गए तो पुकारेगी हर सदा हम को
न जाने कितनी ज़बानों से हम बयाँ होंगे

इब्राहीम अश्क




दुनिया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई
बैठा मैं अपने घर में अकेला ही रह गया

इब्राहीम अश्क




करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे
इलाही इतना भी उस शख़्स को हिजाब न दे

इब्राहीम अश्क




ख़ुद अपने आप से लेना था इंतिक़ाम मुझे
मैं अपने हाथ के पत्थर से संगसार हुआ

इब्राहीम अश्क




किस लिए कतरा के जाता है मुसाफ़िर दम तो ले
आज सूखा पेड़ हूँ कल तेरा साया मैं ही था

इब्राहीम अश्क




कोई भरोसा नहीं अब्र के बरसने का
बढ़ेगी प्यास की शिद्दत न आसमाँ देखो

इब्राहीम अश्क




कोई तो होगा जिस को मिरा इंतिज़ार है
कहता है दिल के शहर-ए-तमन्ना में ले के चल

इब्राहीम अश्क