दुनिया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई
बैठा मैं अपने घर में अकेला ही रह गया
इब्राहीम अश्क
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चले गए तो पुकारेगी हर सदा हम को
न जाने कितनी ज़बानों से हम बयाँ होंगे
इब्राहीम अश्क
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बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में
इंसाँ की ज़िंदगी का अजब बंदोबस्त था
इब्राहीम अश्क
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