बस्ती के हस्सास दिलों को चुभता है
सन्नाटा जब सारी रात नहीं होता
हनीफ़ तरीन
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हर ज़ख़्म-ए-कोहना वक़्त के मरहम ने भर दिया
वो दर्द भी मिटा जो ख़ुशी की असास था
हनीफ़ तरीन
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जिन का यक़ीन राह-ए-सुकूँ की असास है
वो भी गुमान-ए-दश्त में मुझ को फँसे लगे
हनीफ़ तरीन
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महफ़िल में फूल ख़ुशियों के जो बाँटता रहा
तन्हाई में मिला तो बहुत ही उदास था
हनीफ़ तरीन
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पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया
वो दाएरा-ए-रब्त बिगड़ने के लिए था
हनीफ़ तरीन
रेत पर जलते हुए देख सराबों के चराग़
अपने बिखराव में वो और सँवर जाता है
हनीफ़ तरीन
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रिश्ते नाते टूटे फूटे लगे हैं
जब भी अपना साया साथ नहीं होता
हनीफ़ तरीन
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