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उस के गुलाबी होंट तो रस में बसे लगे | शाही शायरी
uske gulabi honT to ras mein base lage

ग़ज़ल

उस के गुलाबी होंट तो रस में बसे लगे

हनीफ़ तरीन

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उस के गुलाबी होंट तो रस में बसे लगे
लेकिन बदन के ज़ाइक़े बे-कैफ़ से लगे

टूटे क़दम क़दम पे जो अपनी लचक के साथ
वो दलदलों में ज़ात की मुझ को फँसे लगे

तमसील बन गए हैं समुंदर की झाग की
सहरा-ए-ग़म की राख में जो भी धँसे लगे

जिन का यक़ीन राह-ए-सुकूँ की असास है
वो भी गुमान-ए-दश्त में मुझ को फँसे लगे

हम ले के बे-अमानी को जंगल में आ गए
दिल को जो शहर-ए-ख़ूबाँ में कुछ वसवसे लगे