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ग़ज़नफ़र शायरी | शाही शायरी

ग़ज़नफ़र शेर

13 शेर

अजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी
हमीं ने आग में अपने बदन भिगोए थे

ग़ज़नफ़र




बच के दुनिया से घर चले आए
घर से बचने मगर किधर जाएँ

ग़ज़नफ़र




दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पाँव
जीने की काविशों में बदन हाथ से गया

ग़ज़नफ़र




हम कि साहिल के तसव्वुर से सहम जाते हैं
लोग किस तरह समुंदर में उतरते होंगे

ग़ज़नफ़र




हमारे हाथ से वो भी निकल गया आख़िर
कि जिस ख़याल में हम मुद्दतों से खोए थे

ग़ज़नफ़र




हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
हर एक सुब्ह कोई मुझ को खींच लाता है

ग़ज़नफ़र




कल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
आड़ी-तिरछी सुर्ख़ लकीरें उन पर भी अब देखोगे

ग़ज़नफ़र




मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
ज़रूर लम्स कोई उस का छू गया मुझ को

ग़ज़नफ़र




मैं उस के झूट को भी सच समझ के सुनता हूँ
कि उस के झूट में भी ज़िंदगी की क़ुव्वत है

ग़ज़नफ़र