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अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है | शाही शायरी
ajib shaKHs hai pahle mujhe hansata hai

ग़ज़ल

अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है

ग़ज़नफ़र

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अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है
फिर इस के बअ'द बहुत देर तक रुलाता है

वो बेवफ़ा है हमेशा ही दिल दुखाता है
मगर ये क्या कि वही एक हम को भाता है

वो होश गोश का इंसाँ है फिर भी सहरा में
किसी दिवाने की सूरत सदा लगाता है

ख़िज़र तो आते नहीं हैं मिरे ख़राबे में
ये कौन है जो मुझे रास्ता दिखाता है

हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
हर एक सुब्ह कोई मुझ को खींच लाता है

कभी वो मुझ को उड़ाता है आसमानों में
कभी ज़मीन पे ला कर मुझे गिराता है