कहाँ वो ज़ब्त के दावे कहाँ ये हम 'गौहर'
कि टूटते थे न फिर टूट कर बिखरते थे
गौहर होशियारपुरी
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लहजा तो बदल चुभती हुई बात से पहले
तीर ऐसा तो कुछ हो जिसे नख़चीर भी चाहे
गौहर होशियारपुरी
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लोग किनारे आन लगे
और किनारा डूब गया
गौहर होशियारपुरी
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नाव न डूबी दरिया में
नाव में दरिया डूब गया
गौहर होशियारपुरी
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फूलों में वही तो फूल ठहरा
जो तेरे सलाम को खिला हो
गौहर होशियारपुरी
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उजले मैले पेश हुए
जैसे हम थे पेश हुए
गौहर होशियारपुरी
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