EN اردو
दुखी दिलों में, दुखी साथियों में रहते थे | शाही शायरी
dukhi dilon mein, dukhi sathiyon mein rahte the

ग़ज़ल

दुखी दिलों में, दुखी साथियों में रहते थे

गौहर होशियारपुरी

;

दुखी दिलों में, दुखी साथियों में रहते थे
ये और बात कि हम मुस्कुरा भी लेते थे

वो एक शख़्स बुराई पे तुल गया तो चलो
सवाल ये है कि हम भी कहाँ फ़रिश्ते थे

और अब न आँख न आँसू न धड़कनें दिल में
तुम्ही कहो कि ये दरिया कभी उतरते थे

जुदाइयों की घड़ी नक़्श नक़्श बोलती है
वो बर्फ़-बार हवा थी, वो दाँत बजते थे

अब इन की गूँज यहाँ तक सुनाई देती है
वो क़हक़हे जो तिरी अंजुमन में लगते थे

वो एक दिन कि मोहब्बत का दिन कहें जिस को
कि आग थी न तपिश बस सुलगते जाते थे

कहाँ वो ज़ब्त के दा'वे कहाँ ये हम 'गौहर'
कि टूटते थे न फिर टूट कर बिखरते थे