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बुशरा एजाज़ शायरी | शाही शायरी

बुशरा एजाज़ शेर

5 शेर

अपने सारे रास्ते अंदर की जानिब मोड़ कर
मंज़िलों का इक निशाँ बाहर बनाना चाहिए

बुशरा एजाज़




जब राख से उट्ठेगा कभी इश्क़ का शोला
फिर पाएगी ये ख़ाक शिफ़ा और तरह की

बुशरा एजाज़




मिरे नुक्ता-दाँ तिरा फ़हम अपनी मिसाल है
मैं हूँ एक सादा सवाल कोई जवाब दे

बुशरा एजाज़




मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था
मुझे बस वो उसे सारा ज़माना चाहिए था

बुशरा एजाज़




शब भी है वही हम भी वही तुम भी वही हो
है अब के मगर अपनी सज़ा और तरह की

बुशरा एजाज़