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मिरी रात मेरा चराग़ मेरी किताब दे | शाही शायरी
meri raat mera charagh meri kitab de

ग़ज़ल

मिरी रात मेरा चराग़ मेरी किताब दे

बुशरा एजाज़

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मिरी रात मेरा चराग़ मेरी किताब दे
मिरा सहरा बाँध ले पाँव से मुझे आब दे

मिरे नुक्ता-दाँ तिरा फ़हम अपनी मिसाल है
मैं हूँ एक सादा सवाल कोई जवाब दे

मिरी चश्म-ए-नम किसी रतजगे में उलझ गई
मिरी नींद ओढ़ ले रात भर मुझे ख़्वाब दे

मिरे गोश्वारे में कौन भरता गया लहू
ऐ मिरी तलब मुझे हर घड़ी का हिसाब दे

मिरे बहर ओ बर को समेट ले मिरे कूज़ा-गर
मुझे अन-कही मुझे आगही का अज़ाब दे