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आज़ाद अंसारी शायरी | शाही शायरी

आज़ाद अंसारी शेर

9 शेर

अफ़्सोस बे-शुमार सुख़न-हा-ए-ग़ुफ़्तनी
ख़ौफ़-ए-फ़साद-ए-ख़ल्क़ से ना-गुफ़्ता रह गए

आज़ाद अंसारी




अगर कार-ए-उल्फ़त को मुश्किल समझ लूँ
तो क्या तर्क-ए-उल्फ़त में आसानियाँ हैं

आज़ाद अंसारी




बंदा-परवर मैं वो बंदा हूँ कि बहर-ए-बंदगी
जिस के आगे सर झुका दूँगा ख़ुदा हो जाएगा

so deep is my devotion, for this piety of mine
if I bow to anyone, he would become divine

आज़ाद अंसारी




दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर
दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग

ignorant of mores when seeking visions bright
if you want the vision, you first need the sight

आज़ाद अंसारी




हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
ऐ ज़िंदगी वगरना ज़माने में क्या न था

आज़ाद अंसारी




किसे फ़ुर्सत कि फ़र्ज़-ए-ख़िदमत-ए-उल्फ़त बजा लाए
न तुम बेकार बैठे हो न हम बेकार बैठे हैं

आज़ाद अंसारी




सज़ाएँ तो हर हाल में लाज़मी थीं
ख़ताएँ न कर के पशेमानीयाँ हैं

आज़ाद अंसारी




तलब-ए-आशिक़-ए-सादिक़ में असर होता है
गो ज़रा देर में होता है मगर होता है

आज़ाद अंसारी




वो काफ़िर-निगाहें ख़ुदा की पनाह
जिधर फिर गईं फ़ैसला हो गया

those faithless eyes, lord's mercy abide!
wherever they turn, they deem to decide

आज़ाद अंसारी