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अतहर राज़ शायरी | शाही शायरी

अतहर राज़ शेर

3 शेर

गिरती हुई दीवार का साया था तिरा साथ
फिर भी तिरी बाहोँ से जुदा थे तो हमीं थे

अतहर राज़




हम गर्दिश-ए-गिर्दाब-ए-अलम से नहीं डरते
तूफ़ाँ है अगर आज किनारा भी तो होगा

अतहर राज़




यूँ तसव्वुर में दबे पाँव तिरी याद आई
जिस तरह शाम की बाँहों में सितारे आए

अतहर राज़