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अताउर्रहमान क़ाज़ी शायरी | शाही शायरी

अताउर्रहमान क़ाज़ी शेर

2 शेर

बिखर बिखर गया इक मौज-ए-राएगाँ की तरह
किसी की जीत का नश्शा किसी की मात के साथ

अताउर्रहमान क़ाज़ी




कशिश कुछ ऐसी थी मिट्टी की बास में हम लोग
क़ज़ा का दाम बिछा था मगर चले आए

अताउर्रहमान क़ाज़ी