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अशअर नजमी शायरी | शाही शायरी

अशअर नजमी शेर

15 शेर

अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है
किसी दिन ख़ामुशी में ख़ुद को तन्हा छोड़ जाना है

अशअर नजमी




बहुत मोहतात हो कर साँस लेना मो'तबर हो तुम
हमारा क्या है हम तो ख़ुद ही अपनी रद में रहते हैं

अशअर नजमी




कैनवस पर है ये किस का पैकर-ए-हर्फ़-ओ-सदा
इक नुमूद-ए-आरज़ू जो बे-निशाँ है और बस

अशअर नजमी




मैं ने भी परछाइयों के शहर की फिर राह ली
और वो भी अपने घर का हो गया होना ही था

अशअर नजमी




न जाने कब कोई आ कर मिरी तकमील कर जाए
इसी उम्मीद पे ख़ुद को अधूरा छोड़ जाना है

अशअर नजमी




ना-तमामी के शरर में रोज़ ओ शब जलते रहे
सच तो ये है बे-ज़बाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं

अशअर नजमी




रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था
वो भी आख़िर मेरे जैसा हो गया होना ही था

अशअर नजमी




रस्ते फ़रार के सभी मसदूद तो न थे
अपनी शिकस्त का मुझे क्यूँ ए'तिराफ़ था

अशअर नजमी




सरों के बोझ को शानों पे रखना मोजज़ा भी है
हर इक पल वर्ना हम भी हल्क़ा-ए-सरमद में रहते हैं

अशअर नजमी