धुल जाते हैं इक दिन आख़िर जैसे भी हों दाग़
मन का मैल और मैली चादर धो सकता है कौन
अमजद शहज़ाद
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तुझ से मिरा मुआमला होता ब-राह-ए-रास्त
ये इश्क़ दरमियान न होता तो ठीक था
अमजद शहज़ाद