EN اردو
कुछ है जो ये गुमान न होता तो ठीक था | शाही शायरी
kuchh hai jo ye guman na hota to Thik tha

ग़ज़ल

कुछ है जो ये गुमान न होता तो ठीक था

अमजद शहज़ाद

;

कुछ है जो ये गुमान न होता तो ठीक था
सर पर ये आसमान न होता तो ठीक था

अच्छा था गर ज़मीन न होती जहान में
या फिर कोई जहान न होता तो ठीक था

इंसान मेहमान है दो-चार रोज़ का
उस पर ये इम्तिहान न होता तो ठीक था

अपनी तलाश में तो न फिरता इधर-उधर
इतना बड़ा मकान न होता तो ठीक था

तुझ से मिरा मुआमला होता ब-राह-ए-रास्त
ये इश्क़ दरमियान न होता तो ठीक था

कैसा अजीब है कि मैं हूँ भी नहीं भी हूँ
मेरा कहीं निशान न होता तो ठीक था