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आलोक यादव शायरी | शाही शायरी

आलोक यादव शेर

12 शेर

धावा बोलेगा बहुत जल्द ख़िज़ाँ का लश्कर
शाख़ को नेज़ा करूँ फूल को तलवार करूँ

आलोक यादव




दिलकशी थी उन्सियत थी या मोहब्बत या जुनून
सब मराहिल तुझ से जो मंसूब थे अच्छे लगे

आलोक यादव




एक उम्र से तुझे मैं बे-उज़्र पी रहा हूँ
तू भी तो प्यास मेरी ऐ जाम पी लिया कर

आलोक यादव




हद-ए-इमकान से आगे मैं जाना चाहता हूँ पर
अभी ईमान आधा है अभी लग़्ज़िश अधूरी है

आलोक यादव




हुस्न की दिलकशी पे नाज़ न कर
आइने बद-नज़र भी होते हैं

आलोक यादव




मिरे लिए हैं मुसीबत ये आइना-ख़ाने
यहाँ ज़मीर मिरा बे-नक़ाब रहता है

आलोक यादव




मुझ को जन्नत के नज़ारे भी नहीं जचते हैं
शहर-ए-जानाँ ही तसव्वुर में बसा है साहब

आलोक यादव




नई नस्लों के हाथों में भी ताबिंदा रहेगा
मैं मिल जाऊँगा मिट्टी में क़लम ज़िंदा रहेगा

आलोक यादव




प्यार का दोनों पे आख़िर जुर्म साबित हो गया
ये फ़रिश्ते आज जन्नत से निकाले जाएँगे

आलोक यादव