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अखिलेश तिवारी शायरी | शाही शायरी

अखिलेश तिवारी शेर

13 शेर

अक़्ल वालों में है गुज़र मेरा
मेरी दीवानगी सँभाल मुझे

अखिलेश तिवारी




बे-सबब कुछ भी नहीं होता है या यूँ कहिए
आग लगती है कहीं पर तो धुआँ होता है

अखिलेश तिवारी




हँसना रोना पाना खोना मरना जीना पानी पर
पढ़िए तो क्या क्या लिक्खा है दरिया की पेशानी पर

अखिलेश तिवारी




हर-दम बदन की क़ैद का रोना फ़ुज़ूल है
मौसम सदाएँ दे तो बिखर जाना चाहिए

अखिलेश तिवारी




जिसे परछाईं समझे थे हक़ीक़त में न पैकर हो
परखना चाहिए था आप को उस शय को छू कर भी

अखिलेश तिवारी




ख़याल आया हमें भी ख़ुदा की रहमत का
सुनाई जब भी पड़ी है अज़ान पिंजरे में

अखिलेश तिवारी




कोई तो बात है पिछले पहर में रातों के
ये बंद कमरा अजब रौशनी से भर जाए

अखिलेश तिवारी




फिसलन ये किनारों प ये ठहराव नदी का
सब साफ़ इशारे हैं कि गहराई बहुत है

अखिलेश तिवारी




क़दम बढ़ा तो लूँ आबादियों की सम्त मगर
मुझे वो ढूँढता तन्हाइयों में आया तो

अखिलेश तिवारी