सुब्ह-सवेरा दफ़्तर बीवी बच्चे महफ़िल नींदें रात
यार किसी को मुश्किल भी होती है इस आसानी पर
अखिलेश तिवारी
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तो क्या पलट के वही दिन फिर आने वाले हैं
कई दिनों से है दिल बे-क़रार पहले सा
अखिलेश तिवारी
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वह शक्ल वह शनाख़्त वह पैकर की आरज़ू
पत्थर की हो के रह गई पत्थर की आरज़ू
अखिलेश तिवारी
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यहीं से राह कोई आसमाँ को जाती थी
ख़याल आया हमें सीढ़ियाँ उतरते हुए
अखिलेश तिवारी
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