बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी
बढ़े है उम्र ज्यूँ-ज्यूँ ज़िंदगी कम होती जाती है
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना
ज़रा उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ देना
सफ़ी लखनवी
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
राह में ज़िंदगी खड़ी होगी
साग़र सिद्दीक़ी
मौत कहते हैं जिस को ऐ 'साग़र'
ज़िंदगी की कोई कड़ी होगी
साग़र सिद्दीक़ी
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
साहिर लुधियानवी
गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से
पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम
साहिर लुधियानवी
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हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम
साहिर लुधियानवी