एक हो जाएँ तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
हम अहल-ए-दिल ने मेयार-ए-मोहब्बत भी बदल डाले
जो ग़म हर फ़र्द का ग़म है उसी को ग़म समझते हैं
अली जव्वाद ज़ैदी
यही है इबादत यही दीन ओ ईमाँ
कि काम आए दुनिया में इंसाँ के इंसाँ
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
अमीर मीनाई
सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत
बशीर बद्र
अहल-ए-हुनर के दिल में धड़कते हैं सब के दिल
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली
न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी
हफ़ीज़ जालंधरी