नफ़रत के ख़ज़ाने में तो कुछ भी नहीं बाक़ी
थोड़ा गुज़ारे के लिए प्यार बचाएँ
इरफ़ान सिद्दीक़ी
हमारा ख़ून का रिश्ता है सरहदों का नहीं
हमारे ख़ून में गँगा भी चनाब भी है
कँवल ज़ियाई
मिरे सेहन पर खुला आसमान रहे कि मैं
उसे धूप छाँव में बाँटना नहीं चाहता
ख़ावर एजाज़
अजीब दर्द का रिश्ता है सारी दुनिया में
कहीं हो जलता मकाँ अपना घर लगे है मुझे
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ
मिर्ज़ा अतहर ज़िया
पी शराब नाम-ए-रिंदाँ ता असर सूँ कैफ़ के
ज़िक्र-ए-अल्लाह अल्लाह हो वे गर कहे तू राम राम
क़ुर्बी वेलोरी
किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है
ग़रज़ बारह महीने तीस दिन हम को मोहर्रम है
रिन्द लखनवी