ये हिजरतें हैं ज़मीन ओ ज़माँ से आगे की
जो जा चुका है उसे लौट कर नहीं आना
आफ़ताब इक़बाल शमीम
अब नहीं लौट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला
अख़्तर नज़्मी
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल
उठ गई हैं सामने से कैसी कैसी सूरतें
रोइए किस के लिए किस किस का मातम कीजिए
हैदर अली आतिश
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
जौन एलिया
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रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं
कैफ़ी आज़मी
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई
इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया
ख़ालिद शरीफ़