जिन्हें अब गर्दिश-ए-अफ़्लाक पैदा कर नहीं सकती
कुछ ऐसी हस्तियाँ भी दफ़्न हैं गोर-ए-ग़रीबाँ में
मख़मूर देहलवी
मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं
मीर तक़ी मीर
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा
परवीन शाकिर
लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं
रईस फ़रोग़
कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए
रहमान फ़ारिस
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
अब देखने को जिन के आँखें तरसतियाँ हैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
जाने वाले कभी नहीं आते
जाने वालों की याद आती है
सिकंदर अली वज्द