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Sardi शायरी | शाही शायरी

Sardi

14 शेर

वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह

मुसव्विर सब्ज़वारी




वो गले से लिपट के सोते हैं
आज-कल गर्मियाँ हैं जाड़ों में

मुज़्तर ख़ैराबादी




इक बर्फ़ सी जमी रहे दीवार-ओ-बाम पर
इक आग मेरे कमरे के अंदर लगी रहे

सालिम सलीम




लबों में आ के क़ुल्फ़ी हो गए अशआर सर्दी में
ग़ज़ल कहना भी अब तो हो गया दुश्वार सर्दी में

सरफ़राज़ शाहिद




मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है

शहरयार




अब उदास फिरते हो सर्दियों की शामों में
इस तरह तो होता है इस तरह के कामों में

शोएब बिन अज़ीज़




जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गया
माँ ने अपने ला'ल की तख़्ती जला दी रात को

सिब्त अली सबा