EN اردو
आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है | शाही शायरी
aahaT jo sunai di hai hijr ki shab ki hai

ग़ज़ल

आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है

शहरयार

;

आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है
ये राय अकेली मेरी नहीं है सब की है

सुनसान सड़क सन्नाटे और लम्बे साए
ये सारी फ़ज़ा ऐ दिल तेरे मतलब की है

तिरी दीद से आँखें जी भर के सैराब हुईं
किस रोज़ हुआ था ऐसा बात ये कब की है

तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को
जो बात बहुत पहले करनी थी अब की है

मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है